उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान--मुंशी प्रेमचंद सहसा चुहिया ने आकर पुकारा -- गोबर का क्या हाल है, बहू! मैने तो अभी सुना। दूकान से दौड़ी आयी हूँ। झुनिया के रुके हुए आँसू उबल पड़े; कुछ ...

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